Dhal Vidroh ढाल विद्रोह
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- झारखण्ड में ‘अंग्रेजों का प्रवेश’ सर्वप्रथम सिंहभूम-मानभूम की ओर से हुआ।अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का प्रथम विगुल इसी क्षेत्र में बजा। झारखंड में अंग्रेजों का प्रथम प्रवेश सिंहभूम में सन् 1760 में हो गया था। मिदनापुर उनके अधीन था और तभी से वे शेष क्षेत्रों पर आधिपत्य जमाने के प्रयासों में लगे रहे थे।
उस समय सिंहभूम में तीन प्रमुख राज्य थे, जिनमें
- सिंहवंश के पोरहट,
- ढालवंश के ढालभूम और
- ‘हो’ जाति के कोल्हान थे।
1767 में अंग्रेजों ने फर्गुसन के नेतृत्व में कंपनी सेना को सिंहभूम पर आक्रमण के लिए भेज दिया।
उसने पहले ही आक्रमण में झाड़ग्राम को जीत लिया।
फर्गुसन के सैन्यबल ने कुछ राजाओं को तो बिना युद्ध के ही आत्मसमर्पण करने को विवश कर दिया था।
इनमें
- रामगढ़ के मुकुंद सिंह,
- जामवनी और
- सिलदा के राजा प्रमुख थे।
ढाल राजा
हालाँकि ढाल राजा ने कंपनी सेना को घाटशिला तक रोकने के अनेक प्रयास किए, लेकिन फिर भी उसे हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद ढाल राजा ने राजमहल में भी आग लगा दी।
जब 22 मार्च, 1767 को फर्गुसन घाटशिला पहुँचा तो वहाँ उसे जलता हुआ राजमहल मिला।
फर्गुसन एक शातिर सेनापति था। उसने अपनी चालबाजी से ढाल राजा को बंदी बना लिया और उसे कैदी बनाकर मिदनापुर भेज दिया, फिर उसने वहाँ की बागडोर कंपनी की शर्तों पर ढाल राजा के भतीजे जगन्नाथ ढाल को 5,500 रुपए सालाना कर पर सौंप दी।
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ढाल राजा के भतीजे जगन्नाथ ढाल
जगन्नाथ ढाल भी स्वाभिमानी राजा था और वह भी अंग्रेजों की अधीनता नहीं चाहता था। उसने अगले ही वर्ष कर देने से मना कर दिया और स्वयं को स्वतंत्र राजा घोषित कर दिया। कंपनी सरकार को उसकी यह धृष्टता बुरी लगी और उसने लेफ्टिनेंट रुक के नेतृत्व में अंग्रेज सेना “जगन्नाथ ढाल” को सबक सिखाने के लिए भेजी।
उसका भाई नीमू ढाल
जगन्नाथ ढाल तो भाग गया, लेकिन उसका भाई नीमू ढाल पकड़ा गया।
नीमू ढाल ने अंग्रेजों से नया सौदा कर लिया ।
वह कंपनी की सभी शर्तों को स्वीकार कर राजा बनने के लिए तैयार हो गया। कंपनी को ऐसे ही व्यक्ति की आवश्यकता थी ।
इस प्रकार नीमू ढाल को राजा बना दिया गया।
भूमिजों का क्रोध
नीमू ढाल की इस हरकत ने भूमिजों को क्रोधित कर दिया और वे विद्रोह पर उतर आए।
नीमू ढाल ने अंग्रेजों की सहायता से विद्रोह को तो दबा दिया, लेकिन इससे जगन्नाथ ढाल को यह हौसला मिला कि विद्रोही भूमिज उसका साथ दे सकते हैं।
उसने दसों दिशाओं में जब प्रयास किए तो उसे सफलता मिली।
दस वर्ष तक जगन्नाथ ढाल ने कंपनी को खूब छकाया।
अंततः कंपनी ने परेशान होकर जगन्नाथ ढाल को ही राजा घोषित कर दिया। उसे कर के रूप में प्रतिवर्ष एक हजार रुपया बढ़ाकर देना था।
राजा बनने के बदले में जगन्नाथ धाल ने अंग्रेजी कम्पनी को तीन वर्षों में क्रमश: 2000 रुपये, 3000 रुपये तथा 4000 रुपये वार्षिक कर के रूप में देना स्वीकार किया।
1800 ई. में इस राशि को बढ़ाकर 4267 रुपये कर दिया गया। ढाल राजा ने यह शर्त स्वीकार कर ली।
इस प्रकार ढाल राजा व कंपनी के बीच हुई यह संधि एक प्रकार से अन्य राजाओं के लिए भी युद्ध टालने का एक मार्ग बनी।