झारखण्ड के जनजातिय विद्रोहों में Chuar Vidroh बहुत ही महत्वपूर्ण है ,चुआड़ विद्रोह का काल 1769-1805 ई. था ।
Chuaar vidroh या chuar vidroh से jpsc या jssc की परीक्षा में सवाल आ सकते है इसलिए चुआड़ विद्रोह की भूमिका समझना जरुरी है ।
chuar vidroh kya hai kab hua.
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Chuar vidroh ke mahanayak kaun the.चुआर विद्रोह का सम्पूर्ण ज्ञान (chuar vidroh) इस लेख में समझेंगे |
- अंग्रेज अधिकारी जंगल महाल के भूमिजों को चुआर/चोआड़ (अर्थात् दुवंत और नीच जाति) कहते थे, इसलिए इनके विद्रोह को चुआर विद्रोह कहा गया।
- चुआर जंगल साफ कर खेती करते, पशु-पक्षियों का शिकार करते और जंगल में पैदा होने वाली वस्तुओं को बेच कर गुजारा करते थे।
- उनमें से अधिकांश स्थानीय जमींदारों के यहाँ ‘पाइक’ यानी सिपाही का काम करते थे।
- वेतन के बदले उन्हें जमीन दी जाती थी, जो ‘पाइकान जमीन’ कहलाती थी।
- अंग्रेज शासकों ने कब्जा जमाते ही चुआरों की पुश्तैनी जमीनें छीन-छीन कर नए जमींदारों के हाथ बेचना और इन जमींदारों के साथ मिलकर नई प्रजा बसाना शुरू किया।
- साथ ही पाइकों को हटाकर बाहर से ला-लाकर पुलिस को उनकी जगह नियुक्त किया।
- इससे हजारों पाइक जमीन, घर-द्वार, जीविका का साधन-सब कुछ खोकर दर-दर की ठोकरें खाने लगे।
- इन पाइकों (सिपाहियों) और किसानों की सम्मिलित शक्ति ने विद्रोह की वह आग लगा दी, जिसे बुझाना अंग्रेज शासकों के लिए बड़ा कठिन हो गया था।
- इसके अलावा अंग्रेज शासकों ने बेशुमार बढ़ाए गए राजस्व को चुकाने में असमर्थ हो गए जमींदारों के हाथ से जमीन छीन ली थी।
- जमीन खो चुके जमींदारों में से कुछ इस विद्रोह में शामिल हुए।
- यह विद्रोह अकाल, लगान में वृद्धि, जमीन की नीलामी एवं अन्य आर्थिक मुद्दों को लेकर किया गया।
चुआड़ विद्रोह अकाल, लगान में वृद्धि, जमीन की नीलामी एवं अन्य आर्थिक मुद्दों को लेकर किया गया । Chuar vidroh के प्रमुख नेताओं के नाम हैं – रघुनाथ महतो, श्याम गंजम, सुबल सिंह, जगन्नाथ पातर, मंगल सिंह, दुर्जन सिंह, लाल सिंह, मोहन सिंह आदि ।
रघुनाथ महतो ने 1769 में नारा दिया
‘अपना गांव अपना राज, दूर भगाओ, विदेशी राज।’
1798 के अप्रैल महीने में वीरभूम के जंगल महाल के क्षेत्रों घाटशिला, बिंदू मंडलकुंडा, पुरुग्राम आदि के चुआड़ों एवं मिदनापुर के चुआड़ों ने अंग्रेजों के द्वारा जमीन पर लगान बढ़ाए जाने के खिलाफ पनपे आर्थिक असंतोष के चलते विद्रोह कर दिया।
चुआड़ विद्रोह के दमन करने के लिए लेफ्टिनेंट नन, कैप्टेन फोरबिस, लेफ्टिनेंट गुडयार को भेजा गया
जून में बांकुड़ा के चुआड़ एवं पाइक तथा ओडिशा के पाइक इसमें शामिल हो गये।
विद्रोह के विस्तृत स्वरूप के आगे अंग्रेजी दमन काम नहीं आया एवं अंग्रेजों को विवश होकर चुआड़ एवं पाइक सरदारों को उनसे छीनी गयी जमीनें एवं सारी सुविधाएं वापस करनी पड़ी।