झारखंड की भूगर्भिक संरचना । Geological Structure of Jharkhand

झारखंड की भूगर्भिक संरचना Geological Structure of Jharkhand

Jharkhand public service commission ( JPSC ) or JSSC  प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए Geography of Jharkhand झारखण्ड का भूगोल बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । Geography of Jharkhand झारखण्ड का भूगोल के अंतर्गत झारखंड की भूगर्भिक संरचना । Geological Structure of Jharkhand) को समझना बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि यह आपको JPSC, JSSC एंव झारखण्ड राज्य द्वारा आयोजित अन्य परीक्षाओं मे मददगार साबित हो सकती है ।

झारखंड की भूगर्भिक संरचना । ( Geological Structure of Jharkhand )

झारखंड की भूगर्भिक संरचना के अंतर्गत धरातलीय तथा धरातल के नीचे की चट्टानों के स्वरूप एवं प्रकृति के बारे में पढेंगे । झारखण्ड की धरातल का निर्माण अति प्राचीन या प्री–कैम्ब्रियन कल्प या आर्कियनकालीन चट्टानों से हुआ है । इसका विस्तार झारखंड के 90% भाग पर है । इन चट्टानों को आर्कियन और धारवाड़ क्रम मे वर्गीकृत किया जाता है । झारखण्ड की भूगर्भिक संरचना का कालक्रमानुसार विवरण इस प्रकार है

आर्कियन क्रम की चट्टानें


  • पृथ्वी पर सबसे पहले आर्कियन क्रम की चट्टानों का निर्माण हुआ ।
  • पृथ्वी पर सबसे पुरानी चट्टानें आर्कियन क्रम की चट्टानें हैं ।
  • पृथ्वी के ठंडी होने के पश्चात आर्कियन क्रम की चट्टानों का निर्माण हुआ जो सबसे प्राचीन चट्टानें है । वर्तमान समय मे यह ग्रेनाइट, निस और शिष्ट के रूप मे रूपांतरित हो चुकी है ।
  • यह रवेदार होती है और इसमें जीवाश्म नहीं मिलता है ।

धारवाड़ क्रम की चट्टानें


  • कालांतर मे आर्कियन क्रम की चट्टानों का अपरदन और निक्षेपण हुआ और भारत की प्रथम रूपान्तरित चट्टानों का निर्माण हुआ जिसे धारवाड़ क्रम की चट्टानें कहा जाता है ।
  • यह परतदार होती है और इसमे भी जीवाश्म नहीं होता है ।
  • इसे धात्विक खनिज का भंडारगृह भी कहा जाता है क्योंकि इस क्रम मे धात्विक खनिज प्रचुर मात्रा में पाई जाती है ।
  • धारवाड़ क्रम के चट्टानों की श्रेणियाँ का विस्तार कोलहान क्षेत्र मे है जो उड़ीसा तक फैली हुई है जिसे लौह अयस्क श्रेणी कहा जाता है ।
  • इसका विस्तार कोलहान क्षेत्र मे होने के कारण झारखंड में इन्हें कोल्हान श्रेणी के नाम से भी जाना जाता है।

कुड़प्पा क्रम के चट्टानें


  • समय के साथ अनेक भूगर्भिक हलचलें हुई जिससे धारवाड़ क्रम की चट्टानों का अपरदन और निक्षेपण हुआ जिसके फलस्वरूप कुड़प्पा क्रम के चट्टानों का निर्माण हुआ ।
  • यह अवसादी चट्टानें होती है और इसमे भी कोई जीवाश्म नहीं होता है ।
  • झारखंड मे कुड़प्पा क्रम के चट्टानों का साक्ष्य नहीं पाया जाता है।

विंध्यन क्रम की चट्टानों


  • इनमें बलुआ पत्थर व चूना पत्थर पाया जाता है। इनमें भी परतें होती हैं।
  • कुडप्पा यह परतदार चट्टानें होती है ।
  • इनका निर्माण जलज निक्षेपों द्वारा हुआ है ।
  • ये चट्टानें अधिकतम प्रायद्वीपीय भारत में पायी जाती हैं और इनकी विभिन्न श्रेणियाँ हैं ।
  • इन्हीं श्रेणियों मे से एक का विस्तार सोन नदी घाटी क्षेत्र मे है जहाँ इसे सेमरी श्रेणी के नाम से जाना जाता है ।
  • झारखंड मे विंध्यन क्रम की चट्टानों का विस्तार गढ़वा जिले मे है जो सोन नदी घाटी के क्षेत्र मे सम्मिलित है ।

गोंडवाना क्रम की चट्टानें


  • इस कालखण्ड मे पूरे पृथ्वी के भूगर्भ मे हलचल हुई जिसे हर्सीनियन हलचल कहा जाता है । जिसके फलस्वरूप प्रायद्वीपीय भारत मे अनेकों दरारों का निर्माण हुआ ।
  • झारखण्ड क्षेत्र मे दामोदर भ्रंश का निर्माण इसी काल मे हुआ है । इन्ही दरारों से होकर नदियों का प्रवाह आरंभ हुआ ।
  • नदीयों की संकरी घाटियों और छिछले जल क्षेत्रों मे अपरदन से प्राप्त पदार्थ एकत्र होने लगे ।
  • ये क्षेत्र काफी उपजाऊ बन गए और घने वन उत्पन्न हुए।
    दामोदर घाटी के तलछट से बनी इन चट्टानों में बलुआ पत्थर व कोयले की परतें होती हैं।
  • उत्तरी कोयल की घाटी, गिरिडीह एवं राजमहल की पहाड़ियों में ऐसी चट्टानें मिलती हैं।
  • झारखण्ड के प्रमुख कोयला निक्षेपों का निर्माण इसी श्रेणी के चट्टानों से हुआ है।
  • झारखण्ड मे गोंडवाना क्रम की चट्टानों का विस्तार दामोदर नदी घाटी क्षेत्र से लेकर राजमहल पहाड़ियों तक है ।

राजमहल ट्रैप एवं दक्कन लावा की चट्टानें :


  • लावा के बहने से राजमहल ट्रैप बना तथा रुक-रुक कर दरारों से जो प्रवाह चला, उससे दक्कन लावा बना। ये ही अपक्षयित होकर लेटेराइट एवं बॉक्साइट बन गए।
  • पाट प्रदेश, साहेबगंज का उत्तर-पूर्वी भाग तथा पाकड़ का पूर्वी भाग इसी जमाव का परिणाम है। पलामू, गढ़वा, लोहरदगा व गुमला को ‘पाट प्रदेश’ कहते हैं।
  • झारखण्ड के राँची जिले से पश्चिम का क्षेत्र, लोहरदगा जिला, कुछ पलामू और लातेहार जिलो के क्षेत्र मे दक्कन ट्रैप का निक्षेपण हुआ है ।
  • इन्ही चट्टानों के रूपान्तरण के कारण झारखंड मे लेटराइट मिट्टी का निर्माण हुआ है । राजमहल क्षेत्र मे एक साथ गोंडवाना क्रम की चट्टानें और दक्कन ट्रैप के चट्टानों जैसी विशेषता देखने को मिलती है ।

नवीनतम जलोढ़ निक्षेप :


  • नदी घाटी क्षेत्रों में जलोढ़ निक्षेप से निर्मित संरचना पाई जाती है।
  • इस तरह की संरचना झारखण्ड के सीमित क्षेत्रों जैसे कि राजमहल के पूर्वी भाग, सोन घाटी, स्वर्णरेखा की निचली घाटी आदि में पाए जाते हैं।
BG

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