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Oraon janjati in jharkhand

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झारखण्ड की पहचान जनजातियों की सांस्कृतिक विशिष्टता का परिणाम है।
झारखण्ड में 33 प्रकार की जनजातियां पायी जाती हैं, जो संविधान के अनुच्छेद-342 के अंतर्गत राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचित हैं।

झारखण्ड में 24 जनजातियां प्रमुख जनजातियों की श्रेणी में आती हैं, जबकि अन्य 8 (बिरहोर, कोरवा, असुर, परहिया, विरजिया, सौरिया पहाड़िया, माल पहाड़िया तथा सबर) को आदिम जनजातियों की श्रेणी में रखा गया है।
2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की जनजातियों की कुल जनसंख्या 86,45,042 है, जो यहां की कुल जनसंख्या का 26.2 प्रतिशत है।
इसमें आदिम जनजातियों की संख्या 1,92,425 है, जो राज्य की कुल आबादी का 0.72 प्रतिशत है।

आज के इस लेख में उरांव जनजाति के बारे में विस्तार से जानेंगे | झारखण्ड में किसी भी परीक्षा में जनजातियों के सम्बन्ध में अनेक तरह के सवाल पूछा जाता है इसलिए हम झारखण्ड में पाए जाने वाले सारे जनजातियों के बारे में विस्तृत अध्ययन करेंगे |

उरांव झारखण्ड की दूसरी प्रमुख जनजाति है ।
उरांव परम्परा से मिले संकेतों के अनुसार इनका मूल निवास स्थान दक्कन रहा है, जिसे कोंकण बताया है।
उरांव भाषा एवं प्रजाति दोनों दृष्टि से द्रविड़ जाति के हैं।
दक्षिणी छोटानागपुर और पलामू प्रमण्डल उरांवों का गढ़ है।

इन दोनों प्रमण्डलों में ही लगभग 90 प्रतिशत उरांव निवास करते हैं।

जबकि शेष 10 प्रतिशत उत्तरी छोटानागपुर, संथाल परगना एवं कोल्हान प्रमण्डल में निवास करते हैं।
यह जनजाति करीब 14 प्रमुख गोत्रों में विभाजित हैं।

ये हैं- लकड़ा, रुंडा, गारी, तिर्की, किस्पोट्टा, टोप्पो, एक्का, लिंडा, मिंज, कुजुर, बांडी, बेक, खलखो और केरकेट्टा |
उरांव जनजाति के लोग कुडुख भाषा बोलते हैं, जो द्रविड़ भाषा परिवार की है।
इस जनजाति के लोग स्वयं को अपनी भाषा में ‘कुडुख’ कहते हैं, जिसका अर्थ मनुष्य होता है।

धार्मिक एवं सांस्कृतिक पहचान

सरना इनका मुख्य पूजा स्थल होता है।
उरांव के कबीले में ग्राम पंचायत का बहुत अधिक महत्व है, जिसके निर्णय को गांव का प्रत्येक व्यक्ति मानता है।
इस जनजाति के पंचायत को पंचोरा कहा जाता है।
पाहन इनका धार्मिक प्रधान / पुजारी होता है और महतो गांव का मुखिया जो गांव का सामाजिक-प्रशासनिक प्रबंधन करता है।

उरांव परिवार पितृसत्तात्मक एवं पितृवंशीय होता है।

पिता ही घर का मालिक होता है।

इनका सबसे बड़ा देवता धर्मेश है, जिसकी तुलना ये सूर्य से करते हैं।
ठाकुर देव (ग्राम-देवता), मरांग बुरू (पहाड़ देवता), डीहवार ( सीमांत देवता), पूर्वजात्मा (कुल देवता) आदि हैं।
उरांवों के पूर्वजों की आत्मा सासन में निवास करती है।

गोत्र को ये लोग किली कहते हैं।

 

युवागृह के  सम्बन्ध में

धुमकुड़िया (युवागृह) उरांव जनजाति के युवकों एवं युवतियों की एक महत्वपूर्ण शिक्षण- प्रशिक्षण संस्था है।

युवक और युवतियों के लिए अलग-अलग धुमकुड़िया का प्रबंध होता है।

युवकों के धुमकुड़िया —  जोंख – एरेपा और युवतियों के सुतना – घर को  पेल- एरेपा कहा जाता है।
जोंख का अर्थ कुंवारा होता है।

जोंख एरेपा को धांगर – कुड़िया भी कहा जाता है।
जोंख – एरेपा के मुखिया को महतो या धांगर कहा जाता है, जबकि पेल- एरेपा की देखभाल करने वाली महिला बड़की धांगरिन कहलाती है।
धुमकुड़िया में प्रवेश प्रायः दस ग्यारह वर्ष की उम्र में हो जाता है और विवाह के पूर्व तक वे इसके सदस्य रहते हैं।

धुमकुड़िया में प्रवेश तीन वर्ष में एक बार दिया जाता है।
प्रवेश प्रायः सरहुल के समय होता है।
उरांव एक विवाही होते हैं, किन्तु कुछ विशेष स्थिति में दूसरी पत्नी रखने की मान्यता है ।

विवाह सम्बंधित

उरांवों का पर्व त्यौहार

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